गुरुवार, 2 फ़रवरी 2023

सीड मदर राहीबाई सोमा पोपेरे की जीवनी

         राहीबाई सोमा पोपेरे महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के अकोले आदिवासी ब्लॉक के कोम्बले गांव के महादेव कोली आदिवासी समुदाय की रहने वाली हैं।  52 साल की रहीबाई सोमा पोपरे को स्वदेशी बीजों के संरक्षण के लिए 'सीड मदर' के रूप में जाना जाता है। उन्होंने सैकड़ों देशी किस्मों के संरक्षण और किसानों को पारंपरिक फसल उगाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए काम किया है। राहीबाई सोमा पोपेरे एक नारी सशक्तीकरण को पेश करने वाली एक बेहतरीन मिसाल हैं। 'सीड मदर' ने जैविक खेती को एक नया मुकाम दिया है। स्वयं सहायता समूहों के जरिए उन्होंने 50 एकड़ जमीन पर 17 से ज्यादा देसी फसलों को उगाने का काम करती हैं। दो दशक पहले शुरू किये अपने इस काम को आज उन्होंने स्वयं सहायता समूहों के जरिए बहुत से किसानों को जोड़ लिया है।  

            महाराष्ट्र की 61 वर्षीय आदिवासी किसान राहीबाई पोपरे उन खास लोगों में शामिल हैं, जिन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में से एक पद्म पुरस्कार मिला है। 154 देशी किस्मों के बीजों का संरक्षण करने वाली राहीबाई पोपरे ने गांव कनेक्शन को बताया कि पीएम मोदी ने उनके गांव आने का वादा किया है, लेकिन उनके सुदूर गांव तक जाने के लिए सड़क नहीं हैं।

            अपने सुदूर गांव से काम करते हुए पोपेरे खेती को वापस अपनी जड़ों की ओर ले जा रही हैं। उन्होंने स्वदेशी बीजों को संरक्षित करने के लिए एक आंदोलन का बीड़ा उठाया है और पारंपरिक तरीकों से संरक्षित चावल और ज्वार सहित 154 किस्में हैं। उन्होंने पिछले साल 2020 में गांव कनेक्शन को एक इंटरव्यू में बताया था, "मुझे याद नहीं है कि मैंने वास्तव में बीज कब इकट्ठा करना शुरू किया क्योंकि मुझे नहीं पता कि कैसे गिनना है, लेकिन मुझे लगता है कि यह 20-22 साल पहले ही रहा होगा।"



सीड मदर के नाम से हैं फेमस

            राही बाई कभी स्कूल नहीं गईं लेकिन खेती के क्षेत्र में इनके ज्ञान का लोहा वैज्ञानिक भी मानते हैं। इन्हें सीड मदर के नाम से जाना जाता है। राही बाई ने अपनी मेहनत से बीजों का बैंक तैयार किया है। यहां के बीज कम सिंचाई में भी किसानों को अच्छी फसल देते हैं। राही महाराष्ट्र के अहमद नगर के छोटे सो गांव की रहने वाली हैं। जो एक आदिवासी परिवार से ताल्लुक रखती हैं। बीजों को सहेजने का काम पुस्तैनी था और राही ने उसे आगे बढ़ाया और इतिहास रच दिया।

3500 किसानों संग मिलकर कर रहीं खेती

            राहीबाई ने 50 एकड़ से भी ज्यादा भूमि को संरक्षित किया है जिसमें 17 से अधिक फसले उगाई जा रही हैं। वह 3500 किसानों के साथ मिलकर काम भी कर रही हैं और उन्हें तकनीक से फसलों की पैदावार बढ़ाने के गुर भी सिखा रही हैं। इसके लिए राष्ट्रपति के हाथों इन्हें नारी शक्ति सम्मान भी मिल चुका है और बीबीसी भी 100 शक्तिशाली महिलाओं में शामिल कर चुका है।

2020 में मिला पद्म श्री पुरस्कार

            आज महाराष्ट्र का हर गांव राही बाई सोमा पोपेरे को बीज माता के नाम से जानता है. देसी बीजों के संरक्षण, देसी किस्मों की खेती और किसानों को भी देसी बीज देकर खेती करने में राही बाई ने खूब मदद की है. आज भी वो अपने परिवार के साथ देसी बीजों का उत्पादन करके स्वयं सहायता समूहों को देती है, जिससे देसी किस्मों को बढ़ावा मिल सके. इस काम के जरिए बीज माता ने देश-दुनिया में पहचान बनाई है.

            खेती के क्षेत्र में राही बाई के अनोखे योगदान के लिए भारत सरकार ने साल 2020 में पद्म श्री अवॉर्ड दिया. बता दें कि राही बाई ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हैं, लेकिन एक ग्रामीण महिला होने के नाते दूसरी महिलाओं के हितों के लिए काम करती हैं. आज शिक्षा के बिना ही राही बाई एक किसान एक्सपर्ट की तरह काम करती हैं और दूसरे किसानों को देसी बीजों के संरक्षण के लिए प्रेरित करती है.

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