सर्वप्रथम राष्ट्र फिर गुरु फिर माता-पिता और फिर परमेश्वर। अतः पहले खुद को नहीं, राष्ट्र को देखना चाहिए - छत्रपति शिवाजी महाराज
हेलो दोस्तों आज हम देखेंगे छत्रपति शिवाजी महाराज के अनमोल विचार छत्रपति शिवाजी महाराज निर्विवाद रूप से भारत के सबसे महान राजाओं में से एक हैं. उनकी युद्ध प्रणालियाँ आज भी आधुनिक युग में अपनायीं जातीं हैं. उन्होंने अकेले दम पर मुग़ल सल्तनत को चुनौती दी थी.शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 को माना जाता है. लेकिन आज भी शिवाजी की जन्म तारीख को लेकर कई प्रश्न चिन्ह लगे हुए है. शिवाजी महाराज का जन्म पुणे के शिवनेरी किले में हुआ था. वीर शिवाजी का वास्तविक नाम शिवाजी भोसले था. इनके पिता का नाम शाह जी भोसले तथा माता का नाम जीजाबाई भोसले था. छत्रपति शिवाजी के पिता बीजापुर के सुल्तान की सेना के सेनापति थे. शिवाजी महाराज को बचपन में उनके दादाजी मालोजी भोसले ने राजनीति और युद्ध के गुर सिखाए. माता जीजाबाई ने शिवाजी को धार्मिक ग्रंथों का ज्ञान दिया. जब शिवाजी भोसले 15 साल के थे तब वे अपने दोस्तों के साथ किला बंदी का खेल खेला करते थे.
सन् १६७४ तक शिवाजी ने उन सारे प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था जो पुरन्दर की सन्धि के अन्तर्गत उन्हें मुग़लों को देने पड़े थे। पश्चिमी महाराष्ट्र में स्वतंत्र हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के बाद शिवाजी ने अपना राज्याभिषेक करना चाहा, परन्तु मुस्लिम सैनिको ने ब्राहमणों को धमकी दी कि जो भी शिवाजी का राज्याभिषेक करेगा उनकी हत्या कर दी जायेगी. जब ये बात शिवाजी तक पहुंची की मुगल सरदार ऐसे धमकी दे रहे है तब शिवाजी ने इसे एक चुनौती के रुप मे लिया और कहा की अब वो उस राज्य के ब्राह्मण से ही अभिषेक करवायेंगे जो मुगलों के अधिकार में
टोरणा की विजय
यह मराठाओं के सरदार के रूप में शिवाजी द्वारा कब्जा किया गया पहला किला था. उन्होंने यह जीत महज 16 साल की उम्र में हासिल कर वीरता और दृढ़ संकल्प से अपने शासन की नींव रखी. टोरणा की विजय ने शिवाजी को रायगढ़ और प्रतापगढ़ फतह करने के लिए प्रेरित किया और इन विजयों के कारण बीजापुर के सुल्तान को चिंता हो रही थी कि अगला नंबर उसके किले का हो सकता है और उसने शिवाजी के पिता शाहजी को जेल में डाल दिया था.
बीजापुर के साथ संघर्ष
1645 तक, शिवाजी ने पुणे के आसपास बीजापुर सल्तनत के तहत कई रणनीतिक नियंत्रण हासिल कर लिए – इनायत खान से तोर्ना, फिरंगोजी नरसाला से चाकन, आदिल शाही राज्यपाल से कोंडाना, सिंहगढ़ और पुरंदर के साथ।
अपनी सफलता के बाद, वह मोहम्मद आदिल शाह के लिए एक खतरे के रूप में उभरा था, जिन्होंने 1648 में शिवाजी के पिता शाहजी को कैद कर लिया था। शाहजी को इस शर्त पर रिहा किया गया था कि शिवाजी आगे से एकदम शांत रहेंगे ।
शिवाजी ने 1665 में शाहजी की मृत्यु के बाद एक बीजापुरी जयगीरदार चंद्रराव मोरे से जावली की घाटी को प्राप्त करके अपनी विजय फिर से शुरू की। मोहम्मद आदिल शाह ने शिवाजी को वश में करने के लिए एक शक्तिशाली सेनापति अफजल खान को भेजा।
बातचीत की शर्तों पर चर्चा करने के लिए दोनों 10 नवंबर, 1659 को एक निजी मुलाकात में मिले। शिवाजी ने इसे एक जाल होने का अनुमान लगाया और वह कवच पहने हुए और धातु के बाघ के पंजे को छुपाकर तैयार हुए। जब अफजल खान ने शिवाजी पर खंजर से हमला किया, तो वह अपने कवच से बच गया और शिवाजी ने जवाबी कार्रवाई करते हुए अफजल खान पर बाघ के पंजे से हमला किया, जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गया।
उसने अपनी सेना को नेतृत्वविहीन बीजापुरी टुकड़ियों पर हमला करने का आदेश दिया। प्रतापगढ़ की लड़ाई में शिवाजी के लिए जीत आसान थी, जहां लगभग 3000 बीजापुरी सैनिक मराठा सेना द्वारा मारे गए थे।
मोहम्मद आदिल शाह ने अगली बार जनरल रुस्तम जमान की कमान में एक बड़ी सेना भेजी, जिन्होंने कोल्हापुर की लड़ाई में शिवाजी का सामना किया। शिवाजी ने एक रणनीतिक लड़ाई में जीत हासिल की जिससे सेनापति अपने जीवन के लिए भाग गए।
मुगलों से संघर्ष
उत्तर भारत में बादशाह बनने की होड़ खत्म होने के बाद औरंगजेब का ध्यान दक्षिण की तरफ गया। वो शिवाजी की बढ़ती प्रभुता से परिचित था और उसने शिवाजी पर नियन्त्रण रखने के उद्येश्य से अपने मामा शाइस्ता खाँ को दक्षिण का सूबेदार नियुक्त किया। शाइस्का खाँ अपने 1,50,000 फ़ौज लेकर सूपन और चाकन के दुर्ग पर अधिकार कर पूना पहुँच गया। उसने ३ साल तक मावल में लुटमार कि। एक रात शिवाजी ने अपने 350 मवलो के साथ उनपर हमला कर दिया। शाइस्ता तो खिड़की के रास्ते बच निकलने में कामयाब रहा पर उसे इसी क्रम में अपनी चार अंगुलियों से हाथ धोना पड़ा। शाइस्ता खाँ के पुत्र अबुल फतह तथा चालीस रक्षकों और अनगिनत सैनिकों का कत्ल कर दिया गया।यहॉ पर मराठों ने अन्धेरे मे स्त्री पुरूष के बीच भेद न कर पाने के कारण खान के जनान खाने की बहुत सी औरतों को मार डालाथा। इस घटना के बाद औरंगजेब ने शाइस्ता को दक्कन के बदले बंगाल का सूबेदार बना दिया और शाहजादा मुअज्जम शाइस्ता की जगह लेने भेजा गया।
सूरत में लूट
इस जीत से शिवाजी की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई। 6 साल शाईस्ता खान ने अपनी 1,50,000 फ़ौज लेकर राजा शिवाजी का पुरा मुलुख जलाकर तबाह कर दिया था। इस लिए उस् का हर्जाना वसूल करने के लिये शिवाजी ने मुगल क्षेत्रों में लूटपाट मचाना आरम्भ किया। सूरत उस समय पश्चिमी व्यापारियों का गढ़ था और हिन्दुस्तानी मुसलमानों के लिए हज पर जाने का द्वार। यह एक समृद्ध नगर था और इसका बंदरगाह बहुत महत्वपूर्ण था। शिवाजी ने चार हजार की सेना के साथ 1664 में छः दिनों तक सूरत के धनाड्य व्यापारियों को लूटा। आम आदमी को उन्होनें नहीं लूटा और फिर लौट गए। इस घटना का ज़िक्र डच तथा अंग्रेजों ने अपने लेखों में किया है। उस समय तक यूरोपीय व्यापारियों ने भारत तथा अन्य एशियाई देशों में बस गये थे। नादिर शाह के भारत पर आक्रमण करने तक (1739) किसी भी य़ूरोपीय शक्ति ने भारतीय मुगल साम्राज्य पर आक्रमण करने की नहीं सोची थी।[कृपया उद्धरण जोड़ें]
सूरत में शिवाजी की लूट से खिन्न होकर औरंगजेब ने इनायत खाँ के स्थान पर गयासुद्दीन खां को सूरत का फौजदार नियुक्त किया। और शहजादा मुअज्जम तथा उपसेनापति राजा जसवंत सिंह की जगह दिलेर खाँ और राजा जयसिंह की नियुक्ति की गई। राजा जयसिंह ने बीजापुर के सुल्तान, यूरोपीय शक्तियाँ तथा छोटे सामन्तों का सहयोग लेकर शिवाजी पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में शिवाजी को हानि होने लगी और हार की सम्भावना को देखते हुए शिवाजी ने सन्धि का प्रस्ताव भेजा। जून 1665 में हुई इस सन्धि के मुताबिक शिवाजी 23 दुर्ग मुग़लों को दे देंगे और इस तरह उनके पास केवल 12 दुर्ग बच जाएँगे। इन 23 दुर्गों से होने वाली आमदनी 4 लाख हूण सालाना थी। बालाघाट और कोंकण के क्षेत्र शिवाजी को मिलेंगे पर उन्हें इसके बदले में 13 किस्तों में 40 लाख हूण अदा करने होंगे। इसके अलावा प्रतिवर्ष 5 लाख हूण का राजस्व भी वे देंगे। शिवाजी स्वयं औरंगजेब के दरबार में होने से मुक्त रहेंगे पर उनके पुत्र शम्भाजी को मुगल दरबार में खिदमत करनी होगी। बीजापुर के ख़िलाफ़ शिवाजी मुगलों का साथ देंगे।
आगरा यात्रा
अपनी सुरक्षा का पूर्ण आश्वासन प्राप्त होने के बाद शिवाजी आगरा के दरबार में औरंगज़ेब से मिलने के लिए तैयार हो गये। छत्रपति 9 मई, 1666 को अपने पुत्र शम्भाजी और 4000 मराठा सैनिकों के साथ मुग़ल दरबार में उपस्थित हुए, लेकिन औरंगज़ेब द्वारा उचित सम्मान नही होने पर शिवाजी ने भरे हुए दरबार में औरंगज़ेब को ‘विश्वासघाती’ कहा, जिसके फलस्वरूप औरंगज़ेब ने शिवाजी एवं उनके पुत्र को ‘जयपुर भवन’ में क़ैद कर दिया। वहाँ से शिवाजी 19 अगस्त, 1666 को फलों की टोकरी में छिपकर फ़रार हो गये और 22 सितम्बर, 1666 को रायगढ़ पहुँचे। कुछ दिनों के बाद शिवाजी ने मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब को पत्र लिखकर कहा कि “यदि सम्राट उसे (शिवाजी) को क्षमा कर दें तो वह अपने पुत्र शम्भाजी को दोबारा मुग़ल सेवा में भेज सकते हैं।” औरंगज़ेब ने शिवाजी की इन शर्तों को स्वीकार कर उसे ‘राजा’ की उपाधि प्रदान की।
राज्याभिषेक
1674 तक शिवाजी ने उन सारे प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था, जो पुरन्दर की संधि के अन्तर्गत उन्हें मुग़लों को देने पड़े थे। पश्चिमी महाराष्ट्र में स्वतंत्र हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के बाद शिवाजी ने अपना राज्याभिषेक करना चाहा, लेकिन ब्राह्मणों ने उनका घोर विरोध किया। शिवाजी के निजी सचिव बालाजी आव जी ने इसे एक चुनौती के रूप में लिया और उन्होंने ने काशी में गंगाभ नामक एक ब्राह्मण के पास तीन दूतों को भेजा, लेकिन गंगाभ ने प्रस्ताव ठुकरा दिया, क्योंकि शिवाजी क्षत्रिय नहीं थे। उसने कहा कि क्षत्रियता का प्रमाण लाओ तभी वह राज्याभिषेक करेगा। बालाजी आव जी ने शिवाजी का सम्बन्ध मेवाड़ के सिसोदिया वंश से समबंद्ध के प्रमाण भेजे, जिससे संतुष्ट होकर वह रायगढ़ आया ओर उसने राज्याभिषेक किया।
मृत्यु
1680 ई. में क्षत्रपति शिवाजी की मृत्यु हो गयी. वे अपने पीछे ऐसा साम्राज्य छोड़ गए जिसका मुगलों से संघर्ष जारी रह गया. उनकी मृत्यु के तुरंत बाद, 1681 में, औरंगजेब ने मराठों, आदिल शाही और गोलकुंडा के प्रदेशों पर कब्जा करने के लिए दक्षिण में आक्रामक सैन्य अभियान चलाया.
1.जब लक्ष्य, जीत की बनाया जाता है तो तो उस जीत को हासिल करने के लिए कठिन से कठिन परिश्रम और किसी भी कीमत को चुकाने के लिए हमेसा तैयार रहना चाहिए
2.शत्रु चाहे कितना बड़ा और शक्तिशाली क्यों ना हो उसे सही नियोजन और आत्मबल और उत्साह के जरिये ही हराया जा सकता है
3.सर्वप्रथम राष्ट्र फिर गुरु फिर माता-पिता और फिर परमेश्वर। अतः पहले खुद को नहीं, राष्ट्र को देखना चाहिए।
4.अगर मनुष्य के पास आत्मबल है तो वो समस्त संसार पर अपने हौसले से विजय पताका लहरा सकता है।
5.अगर मनुष्य के पास आत्मबल है तो वो समस्त संसार पर अपने हौसले से विजय पताका लहरा सकता है।
6.जो व्यक्ति धर्म, सत्य, श्रेष्ठता और परमेश्वर के सामने झुकता है। उसका आदर समस्त संसार करता है।
7.प्रतिशोध की भावना मनुष्य को जलाती रहती है। सिर्फ संयम ही प्रतिशोध को काबू करने का एक उपाय हो सकता है।
8.प्रतिशोध की भावना मनुष्य को जलाती रहती है। सिर्फ संयम ही प्रतिशोध को काबू करने का एक उपाय हो सकता है।
9.आत्मबल सामर्थ्य देता है और सामर्थ्य विद्या प्रदान करती है। तथा विद्या स्थिरता प्रदान करती है और स्थिरता विजय की तरफ ले जाती है।
10.अपने आत्मबल को जगाने वाला, खुद को पहचानने वाला और मानव जाति के कल्याण की सोच रखने वाला पूरे विश्व पर राज्य कर सकता है।
11.“एक छोटा कदम छोटे लक्ष्य पर, बाद मे विशाल लक्ष्य भी हासिल करा देता है।” ~ छत्रपति शिवाजी महाराज
12.“जरुरी नही कि विपत्ति का सामना, दुश्मन के सम्मुख से ही करने मे, वीरता हो। वीरता तो विजय मे है।”
13.इस दुनिया में हर व्यक्ति को स्वतंत्र रहने का अधिकार है और वह अधिकार को पाने के लिए वह किसी से लड़ सकता है।
14.जो मनुष्य समय के कुच्रक मे भी पूरी शिद्दत से, अपने कार्यो मे लगा रहता है। उसके लिए समय खुद बदल जाता है।
15.जो व्यक्ति अपने आत्मबल को जान लेता है, खुद को पहचान लेता है, जो मानव जाति के कल्याण को सोच रखता है वही व्यक्ति पूरे विश्व पर राज्य कर सकता है।
16.अंगूर को जब तक न पेरो वो मीठी मदिरा नही बनती, वैसे ही मनुष्य जब तक कष्ट मे पिसता नही, तब तक उसके अन्दर की सर्वौत्तम प्रतिभा बाहर नही आती।"
17.प्रतिशोध मनुष्य को जलाती रहती है, संयम ही प्रतिशोध को काबू करने का उपाय होता है।
18.कोई भी कार्य करने से पहले उसका परिणाम सोच लेना हितकर होता है; क्योकी हमारी आने वाली पीढी उसी का अनुसरण करती है।